Friday, 3 April 2020

Never differentiate

Don't hate
Don't differentiate
They are doctors
They are in white aprons

Somebody says
They are good in white
Some treat them
as they are wild

The nature
The universe
as well our planet
The Corona virus
The Doctors
Never differentiate

Oh! my human race
Don't hate
Don't differentiate
The Corona made us
penned our
nostalgic moments.

@Raksha Singh 'Jyoti'

Monday, 30 March 2020

अलाव

शरद ऋतु और माघ मास, 

जीवन के लिये  है  ख़ास।  

बाबा जी जला दिए 

सुबह-सवेरे अलाव, 

आँच तापने आते लोग 

घेरे का होता जाता फैलाव। 

कोहरे में चलते-चलते 

लोग हो जाते अदृश्य, 

प्रकृति के हैं बड़े 

अजीब-सजीव रहस्य।  

कोई उठता पशुओं को देने चारा   

कोई करने उठता सफ़ाई, 

कोई उठता पानी भरने 

कोई करता दूध-दुहाई।  

क़िस्से चलते रहते 

अलाव पर, 

हाथ सेंककर बढ़ जाते लोग 

अगले पड़ाव पर।  

खेतों से आती 

फूली सरसों की ख़ुशबू, 

बैलों के गले में 

बजती घंटियाँ टुनक-टू। 

तैयार हो आयी 

अलाव पर नन्हीं मुनिया,

मुँह से धुआँ फूकती 

चली स्कूली-दुनिया। 

@रक्षा सिंह "ज्योति" 

Sunday, 29 March 2020

कन्या भ्रूण हत्या

माँ इंतज़ार है मुझे 

तेरी दुनिया में आने का 

तेरी गोद में सोने का 

तेरी प्यारी लोरी सुनने का 

अंश हूँ मैं तेरी 

तेरी दुनिया भी मेरी है 

माँ एक तू ही तो है 

जो तसल्ली देती है 

मैं हूँ अभी अँधेरे संसार में 

जहाँ बस तेरी ही आवाज़ आती है 

मेरी हरकतें माँ तुझे 

न जाने कितना लुभाती हैं 

लेकिन कुछ सवाल 

मैं ख़ुद  से भी करती हूँ ....

एक तू ही तो है 

जिसे मैं अपना समझती हूँ 

फिर क्यों तेरी ममता 

ओ माँ !

उस वक़्त  कमज़ोर पड़ती है 

जब मेरे अस्तित्व को मिटा देना 

तेरी मज़बूरी बनती है ......? 

क्यों लड़ती नहीं हो 

झगड़ती नहीं हो 

उस अमानवीय विचार से

जो तुमको तुम्हारी प्यारी से 

ज़बरन दूर करता है ...? 

ऐ माँ !

ओ  मेरी प्यारी माँ !!

इंतज़ार मुझको भी है 

इंतज़ार तुझको भी है 

फिर क्यों 

तुझे ओ माँ 

मेरी पुकार 

तेरी ममता 

ज़माने से लड़ना नहीं सिखाती है.....? 

@रक्षा सिंह "ज्योति "

Saturday, 28 March 2020

नारी

परिवार का ताना-बाना बुनती है नारी 

ममतामयी जननी है नारी 

कब से लड़ रही है 

अज्ञानता और अशिक्षा से 

रूढ़ियों में उलझी है
 
अपनी स्वेच्छा से 

करुणा ममता का अथाह सागर है 

प्रेम की प्यारी छलकती गागर है  

तोड़कर बंधनों की बेड़ियाँ 

क्रांति का ध्वज लहरायेगी 

आयेगा एक दिन ज़रूर 

 समाज की पहरेदारी धरी रह जायेगी। 

@ रक्षा सिंह "ज्योति"

Wednesday, 25 March 2020

कुछ अच्छा करो ना!

तुम आये हो दहशत की तरह 
न जाने क्या-क्या सिखाकर जाओगे 
आदमी को इंसान बनाकर जाओगे। 
 लगता है कुछ बुराइयाँ मिटाने आये हो।


कब जाओगे?
सब सोचें यही किससे बदला लेने आये हो 
घर में क़ैद हुए सोचते हैं सब 
अपने कर्मों की पुस्तक खोले हुए 
जिन्हें तिलांजलि दे चुके हैं हम सभी
वो सब याद दिलाने आये हो?

इंसानीयत,करुणा,भाईचारा 
जो नफ़रत के चलते दब गये 
शायद नफ़रत मिटाने आये हो
आदमी बन बैठा है स्वयंभू 
मानवीय पहचान के मूल्य जो खो गये
दंभ मिटाने आये हो?

गगनचुंबी इमारतें घर नहीं होतीं 
आज अपनों के साथ 
वक़्त बिताने को विवशकर
सोचने को ठिठककर
हमारे सूने मकानों को 
घर बनाने आये हो?

रोते हुए किशोर को देखकर 
आज पसीजा है दिल मेरा भी 
बच्चों-बुज़ुर्गों की लाख परेशानियाँ 
दहलातीं हैं दिल मेरा भी 
ज़मीनी हक़ीक़त से 
हमें रूबरू कराने आये हो?

कमाल है! तुम भेद नहीं करते
धूर्त मनुष्य की तरह
न अमीरी में न ग़रीबी में 
न ज़ात में न धर्म में 
न लघु में न महान में 
सबको बराबर बनाने आये हो?

न जाने कितने उपाय किये सरकारों ने 
प्रदूषण रोक न पाये किन्हीं उपायों से
हमें नया वातावरण देकर जाओगे 
प्रकृति का कोप शांत करके जाओगे
तुम हवा संग विचार शुद्ध बनाने आये हो?
अभी तो कोरोना क़हर बनकर आये हो।

@रक्षा सिंह 'ज्योति'