Wednesday 25 March 2020

कुछ अच्छा करो ना!

तुम आये हो दहशत की तरह 
न जाने क्या-क्या सिखाकर जाओगे 
आदमी को इंसान बनाकर जाओगे। 
 लगता है कुछ बुराइयाँ मिटाने आये हो।


कब जाओगे?
सब सोचें यही किससे बदला लेने आये हो 
घर में क़ैद हुए सोचते हैं सब 
अपने कर्मों की पुस्तक खोले हुए 
जिन्हें तिलांजलि दे चुके हैं हम सभी
वो सब याद दिलाने आये हो?

इंसानीयत,करुणा,भाईचारा 
जो नफ़रत के चलते दब गये 
शायद नफ़रत मिटाने आये हो
आदमी बन बैठा है स्वयंभू 
मानवीय पहचान के मूल्य जो खो गये
दंभ मिटाने आये हो?

गगनचुंबी इमारतें घर नहीं होतीं 
आज अपनों के साथ 
वक़्त बिताने को विवशकर
सोचने को ठिठककर
हमारे सूने मकानों को 
घर बनाने आये हो?

रोते हुए किशोर को देखकर 
आज पसीजा है दिल मेरा भी 
बच्चों-बुज़ुर्गों की लाख परेशानियाँ 
दहलातीं हैं दिल मेरा भी 
ज़मीनी हक़ीक़त से 
हमें रूबरू कराने आये हो?

कमाल है! तुम भेद नहीं करते
धूर्त मनुष्य की तरह
न अमीरी में न ग़रीबी में 
न ज़ात में न धर्म में 
न लघु में न महान में 
सबको बराबर बनाने आये हो?

न जाने कितने उपाय किये सरकारों ने 
प्रदूषण रोक न पाये किन्हीं उपायों से
हमें नया वातावरण देकर जाओगे 
प्रकृति का कोप शांत करके जाओगे
तुम हवा संग विचार शुद्ध बनाने आये हो?
अभी तो कोरोना क़हर बनकर आये हो।

@रक्षा सिंह 'ज्योति'
  

3 comments:

  1. रोते हुए किशोर को देखकर
    आज पसीजा है दिल मेरा भी
    बच्चों-बुज़ुर्गों की लाख परेशानियाँ
    दहलातीं हैं दिल मेरा भी ...
    मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ,अति सुन्दर लेखन .

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. गगनचुंबी इमारतें घर नहीं होतीं
    आज अपनों के साथ
    वक़्त बिताने को विवशकर
    सोचने को ठिठककर
    हमारे सूने मकानों को
    घर बनाने आये हो?
    बहुत कुछ बुरा हुआ कोरोना से पर ये भी सही है
    कि सबको घर बिठाकर एक दूसरे को समझकर समझाकर ही जायेगा...
    बहुत सुन्दर
    वाह!!!

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